Solar energy from space to earth | अब दिन हो या रात सोलर से 24 घंटे सातों दिन मिलेगी उर्जा | रात में काम करने वाले सोलर पैनल | new solar technology 2023
अब सोलर से 24 घंटे और सातों दिन बिजली मिलेगी, दिन हो या रात लगातार सोलर से बिजली बनती रहेगी. और यह सब संभव होगा नई तकनीक की बदौलत. दोस्तों अभी तक सोलर से बिजली सिर्फ तभी बनती है जब सूर्य की किरणें सोलर पैनल पर पड़ रही हों, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक का सफल प्रयोग किया है जिसमें सूर्य के द्वारा 24 घंटे और 7 दिन बिजली बनाई जा सकती है, दिन हो या फिर रात सोलर एनर्जी लगातार बिना किसी बाधा के मिलती रहेगी.
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दोस्तों जैसा कि आप जानते ही हैं कि अभी कई लोग सोलर को सिर्फ इसीलिए पसंद नहीं करते क्योंकि उससे सिर्फ दिन में बिजली मिलती है और बादल वाले दिनों में या फिर कोहरे के समय भी सोलर की पावर जेनरेशन क्षमता में काफी कमी हो जाती है. हालांकि दुनिया में कई बड़े-बड़े सोलर प्लांट लगाए गए हैं जो सोलर के द्वारा बिजली का उत्पादन करते हैं. लेकिन इन प्लांटों के साथ भी यही समस्या है कि यह सिर्फ धूप वाले समय में ही बिजली का उत्पादन करते हैं.
हमारे देश भारत में हालांकि वर्ष में लगभग 300 दिन से अधिक सूर्य की किरणें स्पष्ट रूप से मिलती हैं लेकिन दुनिया में कई देश ऐसे हैं जहां लगातार बादल छाए रहते हैं ऐसे में वहां सोलर एनर्जी का सही प्रयोग नहीं हो पाता. लेकिन अंतरिक्ष में सूर्य की किरणें लगातार मिलती हैं इतना ही नहीं वहां दिन और रात भी नहीं होती यानी सोलर की एनर्जी लगातार मिलती रहती है.
स्पेस में लगाई सोलर पैनल और पृथ्वी पर आई बिजली | solar energy from space to earth
वैज्ञानिकों ने विचार किया कि यदि सोलर पैनलों को अंतरिक्ष में लगा दिया जाए तो वहां पर सप्ताह के सातों दिन और 24 घंटे सूर्य की किरणें मिलती हैं, ऐसे में लगातार सोलर से बिजली का उत्पादन करना संभव होगा. वैज्ञानिकों ने मेपल नाम की एक स्पेसक्राफ्ट पर सोलर पैनल की स्थापना की और इसे अंतरिक्ष में भेजा. इसके द्वारा अंतरिक्ष में सोलर एनर्जी से उत्पादित की गई बिजली को पृथ्वी पर सफलतापूर्वक प्राप्त किया गया.
मेपल क्या है और यह कैसे काम करता है? | what is maple spacecraft
मैपल का पूरा नाम (माइक्रोवेब एरे फॉर पावर ट्रांसफर लो ऑर्बिट एक्सपेरिमेंट) है. इस स्पेसक्राफ्ट को केल्टेक कंपनी की ओर से तैयार किया गया है. इसका उद्देश्य अंतरिक्ष में सोलर एनर्जी को एकत्रित करना और इसके बाद उसे पृथ्वी पर भेजना है. मेपल स्पेसक्राफ्ट को 3 जनवरी 2023 में फ्लोरिडा के केप कैनेवरल से स्पेस में लांच किया गया था.
स्पेस में जहां है यह सोलर पैनल वहां न दिन होती है ना रात
अंतरिक्ष में मेपल के माध्यम से जहां पर सोलर पैनलों की स्थापना की गई है वहां ना तो बादल ही हैं और दिन और रात भी नहीं होती यही कारण है कि वहां पर सौर ऊर्जा बिना किसी बाधा के लगातार एकत्रित की जा सकती है. और उसे पृथ्वी पर भेजा जा सकता है.
मेपल कैसे काम करता है? | how does solar energy reach the earth
दोस्तों मैपल में कई माइक्रोवेव पावर ट्रांसमीटर लगे होते हैं, इनका वजन काफी कम होता है सेलकॉन से बने यह माइक्रोवेव पावर ट्रांसमीटर इलेक्ट्रॉनिक चिप के जरिए काम करते हैं यह ट्रांसमीटर सूर्य एनर्जी को लेजर एनर्जी में बदल देते हैं जिससे ऊर्जा आसानी से पृथ्वी तक पहुंचाई जा सके. लेजर एनर्जी के रूप में इस ऊर्जा को पृथ्वी पर मनचाही जगह पर भेजा जा सकता है, पृथ्वी पर मौजूद एनर्जी रिसीव करने वाली स्टेशन इस ऊर्जा को प्राप्त करते हैं और इसे नेशनल ग्रिड में फीड कर देते हैं.
अंतरिक्ष से कहां प्राप्त की गई है बिजली? | solar power from space to earth
वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को सफलतापूर्वक पूरा किया है पहली बार स्पेस में सोलर के द्वारा बनाई गई बिजली को वायरलेस तरीके से पृथ्वी पर रिसीव किया गया है. मेपल स्पेसक्राफ्ट द्वारा भेजी गई इस एनर्जी को अमेरिका के कैलिफोर्निया के पासाडेना में स्थित कैंपस में लगे रिसीवर पर प्राप्त किया गया. वैज्ञानिकों के अनुसार यह अनुमानित समय और फ्रीक्वेंसी से प्राप्त हुई. वैज्ञानिक पहली बार अंतरिक्ष से पृथ्वी पर ऊर्जा प्राप्त करके बेहद उत्साहित हैं. परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने पहली बार अंतरिक्ष से वायरलेस एनर्जी ट्रांसफर को साकार होते हुए देखा है. हमने बिना किसी तार की मदद से इस बिजली को अंतरिक्ष से पृथ्वी पर प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है.
क्या है आगे की योजना
अब वैज्ञानिकों की योजना है कि पृथ्वी की उच्च कक्षा में बड़े-बड़े सेटेलाइट भेजे जाएंगे इन सेटेलाइट्स पर बड़ी संख्या में सोलर पैनल लगे होंगे. इन सोलर पैनलों से सोलर एनर्जी का उत्पादन होगा और उसे पृथ्वी पर भेजा जाएगा. ब्रिटेन के स्पेस एनर्जी इनीशिएटिव के चेयरमैन मर्शियन्न सोल्ताऊ कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट की छमता असीमित है सैद्धांतिक रूप से यह 2050 तक दुनिया की सारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो सकता है. इतना ही नहीं क्योंकि अंतरिक्ष में दिन या रात नहीं होती, बादल नहीं होते ऐसे में लगातार सौर ऊर्जा की आपूर्ति पृथ्वी पर होती रहेगी.
पृथ्वी की अपेक्षा अंतरिक्ष में सोलर पैनल बनाते हैं ज्यादा बिजली
क्योंकि अंतरिक्ष में सोलर का रेडिएशन पृथ्वी की अपेक्षा कहीं अधिक होता है, यही कारण है कि वहां सोलर से पृथ्वी की तुलना में कई गुना अधिक एनर्जी प्राप्त होती है. पृथ्वी की उच्च कक्षा में बड़े सेटेलाइट के लिए जगह की भी कोई समस्या नहीं है वहां पर पर्याप्त जगह उपलब्ध है. ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी वासियों की ऊर्जा जरूरतें अंतरिक्ष में लगे सोलर पैनलों से पूरी होंगी.
खतरे भी हैं इस राह में
हालांकि इस परियोजना के विरोधियों का कहना है की प्रकृति इस दर्जे तक की छेड़छाड़ करना मानव सभ्यता के लिए खतरा हो सकता है. अंतरिक्ष में इतनी बड़ी तादाद में सोलर पैनल की स्थापना करना पृथ्वी पर पारिस्थितिकी तंत्र को गड़बड़ा सकता है. उनका मानना है कि इस तरह की परियोजनाओं का संचालन नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि है पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं.
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