Geothermal energy in Hindi | सौर उर्जा नहीं अब भू उर्जा से दिन रात मिलेगी बिजली | इस नयी तकनीक से भूगर्भ में मौजूद गर्मीं से बनेगी बिजली

वैसे तो बिजली बनाने के अनेक उपाय हैं लेकिन सबके साथ में कुछ ना कुछ समस्या है जैसे कि सोलर एनर्जी के साथ में दिक्कत यह है कि यह रात के दौरान बिजली नहीं बनाती, वही विंड एनर्जी की बात करें तो इसमें बिजली बनाने के लिए हवा का बहाव आवश्यक है.

Geothermal energy in Hindi | रात में भी मिलेगी बिजली

लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तरीका खोजा है जिससे साल के 365 दिन 24 घंटे बिजली बनाई जा सकेगी, चाहे दिन हो या रात हमेशा बिजली मिलती रहेगी. इस तकनीक में वैज्ञानिक पृथ्वी के गर्भ में मौजूद गर्म चट्टानों और लावा का ईंधन के रूप में प्रयोग करके बिजली बनाएंगे. 

जियोथर्मल एनर्जी क्या है

दरअसल इस प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी में इतनी गहराई तक बोरिंग की जाती है जहां तक कि गर्म चट्टानें और लावा मिल जाता है, इसके बात इसे प्रयोग करके बिजली बनाई जाती है, आईए जानते हैं क्या है यह तकनीक और कैसे यह असीमित ऊर्जा का एक नया भंडार खोलने वाली है.


कभी पृथ्वी भी थी सूर्य की तरह आग का दहकता गोला

दोस्तों जैसा की आपने अपने स्कूल के दिनों में पढ़ा ही होगा कि हमारी पृथ्वी भी कभी सूर्य की तरह ही आग का दहकता गोला था, धीरे धीरे इसकी उपरी सतह पर परिवर्तन हुए और यहाँ जीवन का विकास हो गया, लेकिन यदि भूगर्भ की बात करें तो यहाँ पर आज भी गर्म चट्टानों और लावा का विशाल भंडार है. आपने सबने इसे अक्सर ज्वालामुखी के रूप बाहर आते देखा और सुना भी होगा. 

Geothermal energy kya hota hai | जियोथर्मल उर्जा के लिए शुरू हुआ काम

अब वैज्ञानिक पृथ्वी के अन्दर की इस उर्जा का प्रयोग बिजली बनाने के लिए करने वाले हैं, जियोथर्मल ऊर्जा के लिए जर्मनी के म्यूनिख से 50 किलोमीटर दूर स्थित एक साइट पर इस समय वैज्ञानिक धरती को साढे चार हजार मीटर तक की गहराई में खोद रहे हैं, और यह खुदाई हो रही है जियोथर्मल एनर्जी के लिए. 

जी हां बिल्कुल सही पढ़ा आपने धरती के गर्भ में मौजूद अपार ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक धरती को चार किलोमीटर तक गहराई में खोद रहे हैं. वर्तमान में यहां ड्रिलिंग का काम कर रही टीम अभी 1800 मीटर की गहराई तक ड्रिलिंग कर चुकी है, और तेजी से काम जारी है विशेषज्ञों का कहना है कि जल्द ही वह साढे 4000 मीटर की गहराई तक पहुंच जाएंगे.

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम कर रही है काम

जियोथर्मल ऊर्जा के लिए धरती में ड्रिलिंग कर रही इस टीम में कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल हैं जो कि पहले से ही तेल एवं रिफायनिंग के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वैज्ञानिक पृथ्वी में उस गहराई तक खुदाई कर रहे है जहां पर उन्हें पृथ्वी के गर्भ में मौजूद गर्म चट्टानें मिल जाए.


100 से लेकर 8000 मीटर तक गहराई वाले कई कुएं किए तैयार

इस परियोजना पर काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक काफी कुछ सेल गैस से मिलती-जुलती है, जियोथर्मल ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए इस परियोजना के अंतर्गत अभी तक 100 मीटर से लेकर 8000 मीटर तक की गहराई वाले कई कुएं तैयार किए गए हैं. दरअसल अभी तक इस प्रकार की कई किलोमीटर तक की जाने वाली ड्रिलिंग की लागत बहुत अधिक थी जिस वजह से इस पर शोध कार्य नहीं हो पा रहे थे लेकिन अब इस तकनीक की लागत कम हुई है जिसकी वजह से जियोथर्मल एनर्जी पर काम कर रही कंपनी Eavor अब इस परियोजना को तेजी से अमली जामा पहनाने में लगी हुई है.

भू उर्जा का दुनिया में सबसे पहला प्लांट

इस प्रोजेक्ट के निदेशक डेनियल का कहना है कि यह पूरी दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है जहां जियोथर्मल ऊर्जा को इस तरह से प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं.

भूगर्भ में मौजूद है 160 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली चट्टान

प्रोजेक्ट निदेशक का कहना है कि वह है 4000 मीटर गहराई तक की ड्रिलिंग करने के बाद पृथ्वी के गर्भ में मौजूद ऐसी चट्टान तक पहुंचेगी जिसका तापमान 160 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है.

विशेषज्ञों का कहना है कि पृथ्वी के गर्भ में मौजूद इस अपार एनर्जी का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाएगा, अकेले यह एक प्लांट 80 हजार से अधिक घरों को बिजली की सप्लाई करने में सक्षम होगा.


हर मौसम में मिलेगी बिजली

इसके साथ ही इस तकनीक की एक सबसे बड़ी बात यह है कि यह सोलर एनर्जी या फिर विंड एनर्जी की तरह मौसम पर आधारित नहीं होगी बल्कि इसमें हर मौसम में बिजली बनाने की क्षमता होगी. इतना ही नहीं इस तकनीक के माध्यम से 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की जा सकेगी.

क्या सोलर एनर्जी का विकल्प बनेगी यह तकनीक

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भविष्य में यह तकनीक सोलर एनर्जी का विकल्प बन सकेगी और लोग अपने घरों में इसे प्रयोग कर सकेंगे? इस प्रश्न के जवाब में वैज्ञानिकों का कहना है कि चूंकि यह प्लांट लगाना बहुत बड़े खर्च का काम है और इसके लिए बड़ी तकनीक और भारी मशीनों की आवश्यकता होती है इसलिए व्यक्तिगत रूप से इस तरह की टेक्नोलॉजी वाला एनर्जी प्लांट लगाना फिलहाल संभव दिखाई नहीं देता.

इसके साथ ही वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि वह जियोथर्मल एनर्जी की टेक्नोलॉजी के माध्यम से ऊर्जा का एक और विकल्प उपलब्ध कराने जा रहे हैं ना की ऊर्जा का एकमात्र विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं. बिजली प्राप्त करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं जिनमें से यह भी एक तरीका है.

दोस्तों आप इस तकनीक को लेकर क्या सोचते हैं अपने विचार हमें कमेंट करके अवश्य बताएं साथ ही सोलर और तकनीक से जुड़ी नई जानकारी के लिए हमारे साथ सोशल मीडिया पर जुड़ना ना भूले

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